घेस को जड़ी-बूटी कृषिकरण में देश का अग्रणी गांव बनाने में हैप्रेक का अहम योगदान–डॉ.पुरोहित
प्रदीप कुमार श्रीनगर गढ़वाल। चमोली जनपद के जिला मुख्यालय गोपेश्वर से लगभग 145 किलोमीटर दूर,त्रिशूल पर्वत की तलहटी पर बसा घेस गांव जड़ी-बूटी के कृषिकरण कर देश-विदेश में अपनी छाप छोड रहा है। घेस गांव को उत्तराखंड के हर्बल गांव के रूप में पहचाना जाता है। भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत उत्तराखंड को हर्बल हब के रूप में तैयार करने की प्रदेश सरकार ने कावयाद शुरू कर दी है। प्रदेश सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत प्रदेश के सभी जिलों के एक-एक गांव को आदर्श आयुष गांव बनाने जा रही है। जिसमें चमोली जनपद का घेस गांव में शामिल है। हैप्रेक संस्थान के निदेशक डॉ.विजयकांत पुरोहित ने बताया कि घेस गांव को जड़ी-बूटी कृषिकरण में देश का अग्रणी गांव बनाने में गढ़वाल विश्वविद्यालय के उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंंद्र (हैप्रेक) का अहम योगदान है। बताया कि वर्ष 2001-2002 में हैप्रेक संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा घेस गांव का भ्रमण कर वहां के जलवायु को देखते हुए काश्तकारों को कुटकी की खेती का प्रशिक्षण दिया गया। हैप्रेक संस्थान ने उस समय घेस गांव के 32 काश्तकारों को चयनित किया था। जिसमें 4 काश्तकारों ने ही जड़ी-बूटी की खेती करने को दिलचस्पी दिखाई थी। बताया कि कुटकी की खेती कर बढी मात्रा में आमदनी होने और समय-समय पर हैप्रेक संस्थान का सहयोग मिलने पर गांव के काश्तकारों ने धीरे-धीरे कुटकी की खेती करना शुरू की। घेस गांव से कुटकी की बडी संख्या में आयात होना के चलते कुटकी की मांग आज देश विदेश में बढ़ी है। बताया कि घेस गांव के ग्रामीण पारम्परिक खेती करने के साथ ही हिमालयी क्षेत्र की दुलर्भ जड़ी-बूटी अतीश और चिरायता का कृषिकरण भी कर अच्छी आय कमा रहें है। डॉ.पुरोहित ने बताया कि डाबर इंडिया लिमिटेड के डॉ.पंकज प्रसाद रतूडी के प्रयासों से किसानों को अब प्रशिक्षण दिया जायेगा। जिससे किसानों को जड़ी-बूटी के कृषिकरण करने पर अधिक से अधिक लाभ मिल सके। ग्रामीण कमल सिंह बताते हैं कि हैप्रेक संस्थान के सहयोग से वह पिछले 23 सालों से गांव में जड़ी बूटियों का उत्पादन कर रहें हैं। बताया कि गांव में 182 ग्रामीण कुटकी का कृषिकरण किया जा रहा है। बताया कि लगभग 12 से 15 हैक्टेयर भूमि पर कुटकी का कृषिकरण कर रहें है। जिससे लगभग 100 क्वीटल कुटकी का प्रतिवर्ष विपणन किया जा रहा है। घेस के जड़ी-बूटी का कृषिकरण कर रहें काश्तकार लगभग 4 से 5 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष की आय का सृजन कर रहा है। बताया कि घेस गांव से ही देश और विदेश की बहुयामी कंपनी एवं अतंर्राष्ट्रीय कंपनी कुटकी की खरीद कर रहें है।