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महंगे मकान का क्या फायदा

प्रदीप कुमार
देवप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल। अपनी माटी को छोड़ने के दर्द से कवि जगत भी विचलित है। गांवों से लोगों के पलायन करने से पुरखों की खून-पसीने से जुटाई संपत्ति ही नष्ट नहीं होती,बल्कि एक संस्कृति भी नष्ट हो जाती है। शहरों में बसना या विदेश जाना हमारी कोई मजबूरी हो,परंतु निरीह गांव इस मजबूरी को नहीं समझते। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्याल श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में हिंदी पखवाड़ा कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में नामचीन कवियों ने गांवों के खाली होने के दर्द को बखूबी उकेरा। कवि गजेंद्र सोलंकी ने लोगों के विदेश में नौकरी करने की मजबूरी को इंगित करते हुए कहा कि असली आनंद तो अपने देश और अपनी माटी में ही है। उन्होंने कहा कि हिंदी और हिंदुस्तान की मिठास का पूरे जगत में कोई सानी नहीं है-रसों,छंदों,अलंकारों का सुरक्षित गांव है हिंदी,सनातन प्रेम संस्कारों का एक काम है हिंदी,बही विश्व के आंगन में हिंदी की पुरवाई मेरे देश के बसैया हिंदी को अपनाओ,हिंदुस्तान के बसैया हिंदी को अपनाओ हिंदी संस्कृत की बेटी एकदम नवी नवेली है। हिंदुस्तानी हर भाषा हिंदी की सगी सहेली है। अलंकार,रस,छंदों से हिंदी का संस्कार करें अपनी भाषा,अपनी संस्कृति का हम उद्धार करें। कवि श्रीकांत ने हिंदुस्तान की महिमा का गुणगान करते हुए कहा-बलिदानियों की परंपराओं का पन्ना खोल रहा हूं मैं सुनो गौर से दुनिया वालो भारत बोल रहा हूं मैं। डॉ.ऋतु ने पहाड़वासियों के पहाड़ छोड़ने के दर्द को साझा करते हुए गाया-चले आओ पहाड़ों पर निमंत्रण दे रही हूं मैं जसवीर सिंह ’हलधर’ पीढ़ियों के परिवर्तन की सचाई को उजागर करते हुए गाया-मैं जिन्होंने तुम कहा वो बाप हो गये,बच्चे खिलाये गोद में,वो बाप हो गये पोतों के हाथ आ गयी चौपाल गांव की, करने लगे हैं फैसले वो खाप हो गये। धर्मेंद्र उनियाल ने सुनाया-गांव के सरपंच जब दलाली करने लगे,गांव के लोेग तब गांव खाली करने लगे। जिनके खेतों में लहलहाती थी फसलें,वे शहर आकर गमलों की रखवाली करने लगे। उन्होंने शहर और गांवों के बीच फर्क महसूस करते हुए सुनाया-जब लौटना जमीन पर है तो ऐसी उड़ान का क्या फायदा
मां-बाप गांव में गुजार रहे हैं बूढ़ी जिंदगी शहर में चमचमाते बेटों के मकान का क्या फायदा। धर्मेंद्र उनियाल ’धर्मी’ ने प्यार-मोहब्बत का माहौल बनाते हुए सुनाया-इस दीवानगी ने मेरा क्या हाल कर रखा है,मैंने उसके खत का पुर्जा-पुर्जा संभाल रखा है। उन्होंने फिर सुनाया-कहानी एक प्यारी सी चल रही थी उसकी और हमारी चल रही थी अलार्म ने उड़ा दी नींद वरना शादी की तैयारी चल रही थी। अवनीश मलासी ने शिव-पार्वती संवाद का सुंदर वर्णन किया। कवि डॉ.सोमेश बहुगुणा ने भारत के गौरव का गणुगान किया। डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल ने शृंगार रस आधारित ’तुम’ शीर्षक की कविता सुनाई। उन्होंने ’भुला मैं कवि नि छौं’ शीर्षक वाली गढ़वाली कविता का वाचन भी किया। इससे पहले कवि सम्मेलन के शुभारंभ अवसर पर छात्रा मोनिका नौगाईं ने गढ़वाली में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। मुख्य अतिथि पूर्व दर्जा राज्य मंत्री राजकुमार पुरोहित ने इस अवसर पर कहा कि शिक्षण संस्थानों में कवि सम्मेलनों का होना बहुत आवश्यक है। छात्र कवियों से मनोरंजन के साथ शिक्षा और प्रेरणा ग्रहण करते हैं। कवि समाज को दिशा देने का कार्य करते हैं। कवि सम्मेलन शिक्षण संस्थाओं के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के छात्रों को भारत के गौरव से परिचित कराया जाना बहुत आवश्यक है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिसर निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने कहा उत्तराखंड की हिंदी की तीन दिवंगत विभूतियों चंद्रकुंवर बर्त्वाल,इलाचंद्र जोशी तथा विद्यासागर नौटियाल को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हिंदी हमारे देश में एक दूसरे को निकट लाने का कार्य करती है। यह विश्वस्तर पर भी वर्चस्व कायम कर चुकी है। कार्यक्रम का संचालन साहित्य के प्राध्यापक डॉ.सोमेश बहुगुणा ने किया। इस अवसर पर प्रो.चंद्रकला आर.कोंडी,डॉ.शैलेंद्र नारायण कोटियाल,डॉ.शैलेंद्र प्रसाद उनियाल,डॉ.अनिल कुमार,डॉ.अरविंद सिंह गौर,डॉ.सूर्यमणि भंडारी,डॉ.अमंद मिश्र,डॉ.श्रीओम शर्मा,डॉ.सुरेश शर्मा,जनार्दन सुवेदी,डॉ.रश्मिता,डॉ.सुधांशु वर्मा,रजत गौतम छेत्री आदि उपस्थित थे।

By Shikhar

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