प्रदीप कुमार श्रीनगर गढ़वाल।जिसमे प्राण सक्रिय है,वही प्राणी है,जबतक प्राण हैं,तबतक प्राणी का शरीर (जीवन) है,प्राण के विलुप्त होते ही प्राणी पार-निर्वाण को चला जाता है,गीतामे कहा गया है,अव्यक्त दीनी भुलानी व्यक्त मधानी भारत,अव्यक्त निधानान्येव पत्र का परिदेवता एल,अर्थात सभी प्राणी प्रारंभ में अव्यक्त रहते हैं,मध्य अवस्था में व्यक्त होते हैं,तथा विनस्ठ होने पर पुन: अव्यक्त हो जाते हैं,अत: शोक करने की क्या आवश्यकता है,दोप्रकारके दार्शनिक हुए हैं*एक वह जो आत्मा के अस्तित्व को मानते हैं,और दूसरे जो आत्मा के अस्तित्व को नही मानते,आत्मा के अस्तित्वको न मानने वाले को नास्तिक और मानने वालों को अस्तिक कहते हैं,
नास्तिकता वादी सिद्धांत को मान भी लें तो भी यह समझना होगा कि आत्माको पृथक अस्तित्व से भिन्नसारे भौतिक तत्व सृष्टि से पूर्व अदृश्य थे,उसके बादही दृश्य अवस्था आती है,यह प्रकट एवं अप्रकट कालक्रम से होती ही रहती है,अप्रकट अवस्था मेभी तत्व समाप्त नही होते,यह वैज्ञानिक सत्य है,प्रारंभिक और अंतिम समय में भी तत्व प्रकट रहते हैं,केवल अस्तित्व में आने पर या मध्य में अथवा प्राणी में आने पर ही प्रकट होती है,प्राणी के अंदर चाहे वह विशालवृक्ष,पशु,अतिसक्ष्म कीटाणु हो उसका प्राण निश्चित रूप से आश्चर्यजनक है,इस आत्मज्ञान को समझने का एक ही सरल उपाय है,प्रभु को सम्पूर्ण,उससे मुक्त होना,दूसरे शब्दों में प्रभु के पास ही पूर्ण ज्ञान है जो प्राण और प्राणी दोनों का रचियता है,ऋषि पतंजलि ने कहा है,श्वास एक वाहन है जो प्राणको बहन करता है,प्राण वायु स्वासका रूप है।
दार्शनिक ओशो ने प्राण का ऊर्जा से संबंध स्थापित किया है,उनका कहना है कि जबतक शरीर में ऊर्जा है,तबतक उसमे प्राण है,शरीर जीवनका प्राण आधार है,कठोपनिषद केअनुसार क्रिया भेद से उनके पांच स्थान और नाम हैं,कही-कही मनीषियों ने प्राण का शरीर में दस स्थानों का वर्णन किया है,मुख्यरूप से पांच हैं,प्राण, अपान,व्यान,और उड़ान,प्राण-यह इन पांचों मे प्रधान है,इसकी गति मुख और नासिका द्वारा होती है,नासिका के अग्रिम भाग से लेकर हृदय तक शरीर में इसका स्थान है,सपान -हृदय से लेकर नासिका तक इसका स्थान है,खान -पान के रस को समस्त शरीर में पहुचाना इसका कार्य है, उदान -यह ऊपर को ओर चलने वाला है,कंठ से मस्तिष्क तक इसका स्थान है,व्यान -यह सारे शरीर में फैला हुआ है,समस्त नाड़ियां इसका स्थान है,बालक से जवान और जवान से बूढ़ा किसी एक दिन में या पल में नही होता,यह अवस्था का प्रवर्तन प्रतिक्षण होता हुआ ही वहां तक पहुंचता है।